देश में राष्ट्रपति, राज्यपाल के पद सर्वोच्च एवं सम्मानीय है, जिन्हें सर्वप्रथम नागरिक का दर्जा मिला हुआ है। जिनकी आलोचना करना, कार्यशैली पर प्रश्न उठाना न्याय संगत देशहित में कदापि नहीं। इस पद पर आसीन व्यक्ति को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसकी कार्यशैली विवादास्पद एवं पक्षपात पूर्ण नहीं हो। पर जब से इन पदों पर राजनीतिक समर्थक व्यक्ति का चयन किया जाने लगा, ये पद विवादास्पद होते गये।
देश में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति पद पर आने की चुनाव प्रक्रिया तो है पर जिस तरीके से यहां चुनाव होता है, उसमें सत्ता धारी राजनीतिक दल का प्रभाव समाहित होता है। इसी तरह राज्यपाल एवं उपराज्यपाल के पद पर मनोनयन की प्रक्रिया जारी है जहां केंद्र सत्ताधारी राजनीतिक दल का प्रभाव पूर्ण रूप से हावी रहता है। देश की सत्ता बदलती रही पर राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति के चयन एवं राज्यपाल, उपराज्यपाल के पद पर मनोनयन की प्रक्रिया नहीं बदली। इन पदों पर केंद्रितसत्ताधारी राजनीतिक दल का राजनीतिक प्रेरित व्यक्ति का मनोनयन आज तक होता रहा है। जहां प्रदेश में केंद्र की सत्ता से हटकर अलग राजनीतिक दल की सरकार होती है, राज्यपाल, उपराज्यपाल के पद विवादित होते रहे है। इस प्रक्रिया में आगे भी होते रहेंगे। अब तो लोकतंत्र का स्तंभ न्यायालय की आवाज भी इस दिशा में गूंजने लगी है, इस पर विचार होना चाहिए।
जब तक इन सर्वोच्च सम्मानीय पदों पर आगमन राजनीतिक प्रेरित होता रहेगा, इन पदों पर आसीन व्यक्ति विवादित होते हीं रहेंगे।
(यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है)
- नेहा निगम