आचार्य सुधांशु महाराज के जन्मदिवस पर आयोजित सनातन संस्कृति जागरण महोत्सव में सम्लित हुए स्वामी चिदानन्द सरस्वती

आचार्य श्री सुधांशु महाराज के जन्मदिवस पर आयोजित सनातन संस्कृति जागरण महोत्सव
भारत मण्डपम्, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में आयोजित महोत्सव में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संतगण एवं राजनेताओं की गरिमामय उपस्थिति
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, योगऋषि स्वामी रामदेव जी, विजय कौशल , आचार्य बालकृष्ण, चिन्मय बापू ,  डा अर्चिका दीदी, और पूज्य संतों का पावन सान्निध्य
 माननीय रक्षामंत्री, भारत सरकार  राजनाथ सिंह एवं अन्य मुख्य अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति
संस्कृति, सेवा और समर्पण के प्रतीक हैं 

आचार्य सुधांशु जी महाराज के पावन जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर एक भव्य सनातन संस्कृति जागरण महोत्सव का आयोजन हुआ। यह महोत्सव सनातन संस्कृति के मूल्यों को जन-जन तक पहुँचाने का सशक्त माध्यम है।


कार्यक्रम का शुभारंभ वेद मंत्रों की गूंज, दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। देश-विदेश से पधारे पूज्य संतों, विद्वानों और श्रद्धालुओं ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से इस महोत्सव को दिव्यता और गरिमामय बना दिया।
पूज्य संतों ने सनातन धर्म की शाश्वत शिक्षाओं को जीवन में उतारने, भारतीय संस्कृति से जुड़ने, गौरवशाली परंपराओं को जानने और राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनने का प्रेरणादायक संदेश दिया गया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आचार्य सुधांशु जी महाराज ने आत्मज्ञान की राह पर स्वयं चलकर उसे हजारों-लाखों जिज्ञासुओं के लिये सुलभ बनाया और अपने जीवन को सेवा, संस्कार और सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु समर्पित कर दिया।
आचार्यश्री का जीवन एक जीती-जागती गीता है, कर्म, ज्ञान और भक्ति के अद्भुत समन्वय का साक्षात स्वरूप। उनके उपदेशों में जहाँ एक ओर सनातन धर्म की गहराई है, वहीं दूसरी ओर वर्तमान युग की समस्याओं का समाधान भी है। वे आधुनिक जीवन की चुनौतियों को समझते हुए परंपरा और प्रगति के बीच सेतु का कार्य कर रहे हैं।
आचार्य श्री ने धर्म को मंदिरों की दीवारों तक सीमित न रखते हुए उसे घर-परिवार, और समाज के प्रत्येक कोने तक पहुँचाया है। उनके विश्व जागृति मिशन के माध्यम से जो भी सेवा कार्य हो रहे हैं। चाहे निर्धन बच्चों की शिक्षा हो, नारी सशक्तिकरण हो या चिकित्सा सेवा हर क्षेत्र में उन्होंने अद्भुत कार्य किया।
आज जब हम भोगवादी संस्कृति और पर्यावरणीय संकटों के युग में जी रहे हैं, तब ऐसी शिक्षाओं की आवश्यकता है जो धर्म के साथ धरती की चिंता करें, जो पूजा के साथ प्रकृति का पूजन करें, और जो केवल आत्मा की मुक्ति ही नहीं, समाज की उन्नति की भी बात करें। आचार्यश्री इसी दिव्य परंपरा के गौरवमयी स्तंभ हैं।

उन्होंने युवाओं को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का जो अथक प्रयास किया है, वह अद्भुत है। उनके शिविरों, ध्यान-कक्षाओं और प्रेरणादायक संवादों में लाखों युवाओं को जीवन का उद्देश्य मिला है। उनके सान्निध्य में केवल साधना नहीं होती, बल्कि “संस्कार निर्माण” भी होता है।
जियो तो प्रभु के लिये, सोचो तो राष्ट्र के लिये, और कर्म हो मानवता के लिये यह संदेश वे अपने गुरूकुलों के माध्यम से युवाओं को दे रहे हैं।
स्वामी जी ने आचार्य सुधांशु जी और माननीय रक्षामंत्री  राजनाथ सिंह को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा और अंगवस्त्र भेंट कर उनका अभिनन्दन किया।

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