बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में श्रीराम भारती के श्रीमुख से आयोजित श्रीशिवकथा ज्ञानयज्ञ का समापन

ऋषिकेश, 12 मई। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनायें देते हुये कहा कि बुद्धत्व हम सभी के भीतर है। बस हमें आंतरिक यात्रा की ओर लौटना होगा।बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में श्रीराम भारती  के श्रीमुख से आयोजित श्रीशिवकथा ज्ञानयज्ञ का समापन हुआ। महाराष्ट्र से लगभग 600 श्रद्धालुओं का एक विशाल दल शिवकथा हेतु परमार्थ निकेतन ऋषिकेश आया है। कथा समापन के पश्चात श्रद्धालुजनों का समूह उत्तराखंड के पवित्र बद्रीनाथ धाम के लिए प्रस्थान करेगा।स्वामी जी ने कहा कि भारत की तीर्थ परंपरा केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पुनरुत्थान का भी माध्यम है। जब श्रद्धालु उत्तराखंड में आते हैं, तो वे यहां की लोक-आर्थिकी, संस्कृति और सेवायोजन को भी जीवंत बनाते हैं।

उत्तराखंड में तीर्थाटन और पर्यटन राज्य की अर्थव्यवस्था के मुख्य आधारों में शामिल हैं। परमार्थ निकेतन वर्षों से देश-विदेश के श्रद्धालुओं और पर्यटकों के सत्कार के माध्यम से प्रदेश की सामाजिक-आर्थिक संरचना को सशक्त करने में अपना योगदान देता आ रहा है। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि बुद्धत्व कोई बाहर से प्राप्त वस्तु नहीं है, वह हमारे भीतर ही विद्यमान है। जैसे कमल कीचड़ में खिलता है, वैसे ही भीतर की अशांति, अज्ञान और दुख के बीच भी प्रकाश की किरण मौजूद है। आवश्यकता है उस ज्योति को पहचानने, जागृत करने और जीवन में उतारने की।वर्तमान समय में जब विश्व अशांति, हिंसा, तनाव और असहिष्णुता से जूझ रहा है, ऐसे में भगवान बुद्ध का करुणा, शांति और समत्व का मार्ग पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है। उन्होंने कहा कि करुणा ही सच्ची पूजा है। जहाँ करुणा है, वहीं धर्म है। करुणा केवल किसी के दुख को देखने का भाव नहीं, बल्कि उसे दूर करने का प्रयास भी है।आज के भागदौड़ भरे जीवन में जब व्यक्ति बाहरी उपलब्धियों की दौड़ में अपने अस्तित्व और शांति को खो रहा है, ऐसे में भगवान बुद्ध का यह संदेश संजीवनी की तरह है कि शांति बाहर नहीं, भीतर खोजो। भीतर की शांति ही बाहर की शांति का मार्ग है।
स्वामी जी ने कहा कि बुद्धत्व हमारे भीतर है लेकिन उसे प्राप्त करने के लिये हमें स्वयं से जुड़ना होगा तभी हम समाज और सृष्टि से सच्चे रूप में जुड़ पायेगे। आज का दिन हमें यही प्रेरणा देता है कि हम दूसरों की ओर देखने के बजाय अपने भीतर झाँकें, और आत्मबोध, करुणा, ध्यान तथा मौन के माध्यम से जीवन को अर्थपूर्ण और शांतिपूर्ण बनाएं।
आइए, इस बुद्ध पूर्णिमा पर हम संकल्प लें कि अपने जीवन को बुद्धत्व की ओर मोड़ें। शिवकथा के समापन अवसर पर स्वामी जी ने शिवकथा व्यास श्री राम भारती जी को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।
महाराष्ट्र के बुलढाणा क्षेत्र से आए श्रद्धालु शिवकथा के साथ परमार्थ निकेतन में चल रही दिव्य गतिविधियों से गद्गद और भावविभोर हैं। उन्होंने संतोष और तृप्ति के साथ गंगा आरती, प्रातःकालीन यज्ञ, योग, ध्यान और आध्यात्मिक वातावरण का गहन आनंद लिया। श्रद्धालुओं ने कहा कि यह अनुभव केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मिक उत्थान की अनुभूति है। उन्होंने भावुक होकर कहा कि यह कई जन्मों के पुण्य कर्मों का परिणाम है कि हमें माँ गंगा के पावन तट पर, पूज्य संतों की कृपा से, इतनी दिव्यता और शांति का साक्षात्कार करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। ये क्षण जीवन भर स्मरणीय रहेगें।

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