दबंगों के डर से गांव छोड़ एसपी कार्यालय में शरण, पीड़ित बोले — “पुलिस की लाठी मंजूर है, दबंगों की नहीं”

जहानाबाद/संतोष कुमार

जहानाबाद जिले के काको थाना क्षेत्र अंतर्गत भेलावर ओपी के नेरथुआ मठ गांव से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहाँ दबंग पड़ोसियों के कथित उत्पीड़न से तंग आकर एक परिवार सहित दर्जनों ग्रामीणों ने अपना गांव छोड़ दिया है। पीड़ित अब पुलिस अधीक्षक कार्यालय में शरण लेकर सुरक्षा की मांग कर रहे हैं।
रंजीत कुमार और उनका परिवार अब अपने ही घर में सुरक्षित नहीं महसूस कर रहे। ज़ुल्म की इंतिहा इस कदर बढ़ी कि अब वे अपने बच्चों को लेकर एसपी ऑफिस में शरण मांगने को मजबूर हो गए हैं।

गांव निवासी रंजीत कुमार ने पुलिस अधीक्षक अरविंद प्रताप सिंह को आवेदन देकर बताया कि उन्होंने वैध रूप से खरीदी गई जमीन पर कब्जा कर रखा था, लेकिन पड़ोसियों ने उस जमीन का एक हिस्सा जबरन हथिया लिया और जमीन के बीच से रास्ते की मांग करने लगे। मना करने पर रंजीत के पूरे परिवार को मानसिक और सामाजिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा। महिलाओं पर अशोभनीय टिप्पणियाँ की गईं, जिसकी शिकायत काको थाना में भी दर्ज कराई गई थी, जिसके बाद पुलिस ने दोनों पक्षों के बीच समझौता (सुहलनामा) कराया था।

लेकिन मंगलवार सुबह विवाद ने उग्र रूप ले लिया, जब पड़ोसियों ने एकजुट होकर रंजीत के घर पर हमला कर दिया। उनकी पत्नी के गले से चैन छीन ली गई और एक ग्रामीण गंभीर रूप से घायल हो गया। इस घटना से भयभीत होकर रंजीत कुमार अपने पूरे परिवार के साथ अन्य ग्रामीणों को लेकर एसपी कार्यालय पहुंचे और वहां शरण ली।

रंजीत कुमार का कहना है, “हम गांव नहीं लौटेंगे जब तक हमें सुरक्षा का भरोसा नहीं दिया जाता। दबंगों की लाठी से बेहतर है कि हम पुलिस की लाठी झेल लें।”

पीड़ित परिवार सहित अन्य ग्रामीणों की मांग है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई हो और उन्हें स्थायी पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाए, ताकि वे भयमुक्त होकर अपने घर लौट सकें।

इस मामले को लेकर स्थानीय प्रशासन ने संज्ञान लिया है और जांच की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है। वहीं, पीड़ितों की ओर से यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या आम नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित करने में तंत्र विफल हो रहा है?

यह घटना न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है, बल्कि ग्रामीण समाज में बढ़ती दबंगई और सामाजिक असंतुलन की चिंताजनक तस्वीर भी पेश करती है।

इस विषय पर पुलिस प्रशासन का आधिकारिक बयान अब तक सामने नहीं आया है। यह प्रकरण सिर्फ एक ज़मीनी विवाद नहीं, बल्कि ग्रामीण समाज में बढ़ती असुरक्षा और आम नागरिकों के टूटते भरोसे की एक चेतावनी है।

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