कटिहार/ रतन कुमार
नाम “निरोग नर्सिंग होम”, लेकिन काम ऐसा कि मरीज सीधे बेजान होकर बाहर निकले। कटिहार में एक बार फिर निजी अस्पतालों की मनमानी और लापरवाही का शर्मनाक चेहरा सामने आया है। 50 वर्षीय सुकृद्दीन अंसारी इलाज के लिए अस्पताल पहुंचे थे, लेकिन लौटे तो सिर्फ कफन में लिपटे। बताया जा रहा है कि पेट दर्द की मामूली शिकायत लेकर सुकृद्दीन अस्पताल पहुंचे थे। डॉक्टर बीएन गुप्ता ने हर्निया का ऑपरेशन किया और भरोसा भी दिया सब ठीक हो जाएगा। लेकिन ऑपरेशन के बाद मरीज की हालत बिगड़ती गई। एक बार नहीं, दो-दो ऑपरेशन किए गए और फिर जब जान नहीं बची तो डॉक्टर साहब ने हाथ झाड़ लिए। परिजनों ने आरोप लगाया है कि ना समय पर इलाज मिला, ना ईमानदारी। हालत जब हाथ से निकली तो कहा गया कि मरीज को हायर सेंटर ले जाइए। वाह डॉक्टर साहब, पहले खुद बिगाड़ो फिर कहो कहीं और ले जाओ। अस्पताल में हंगामा मचा, परिजनों का गुस्सा फूटा, पुलिस आई, कार्रवाई का आश्वासन मिला और फिर हुआ वही जो अक्सर होता है। अस्पताल प्रशासन ने कुछ नोटों की गड्डी पकड़ाई और मामला सेटल हो गया। इंसाफ की जगह सौदेबाज़ी, जवाबदेही की जगह चुप्पी। और हद तो ये कि निरोग नाम का ये नर्सिंग होम अब भी धड़ल्ले से चल रहा है। कोई पूछने वाला नहीं कि कितनी जिंदगियों को यूं ही ऑपरेशन टेबल पर उतार दिया गया। अब सवाल ये है, क्या इलाज अब सिर्फ धंधा बन गया है ? क्या मौत के बाद भी सन्नाटे से ज़्यादा कुछ नहीं बदलता ?