7.50 करोड़ की लागत से बना बिहार का पहला सिंथेटिक ट्रैक मेंटनेंस की कमी से हो रहा खराब सामानों की हो रही चोरी नहीं ले रहा कोई सुध

पूर्णियां/मलय कुमार झा

बिहार में सरकारी फंड के नाम पर बंदरबांट की जा रही है। सरकारी राशि से बना स्टेडियम बदहाल है।
पूर्णियां जिले में साल 1984 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद ने इंदिरा गांधी स्टेडियम की सौगात दी थी ताकि खेल और खिलाड़ियों को बढ़ावा मिल सके। साल 2023 में खेलो इंडिया अभियान के तहत 7.50 करोड़ की लागत से चार सौ मीटर के राष्ट्रीय स्तर के सिंथेटिक ट्रैक का निर्माण कराया गया। यह बिहार का पहला सिंथेटिक ट्रैक है। भारतीय खेल प्राधिकरण के सौजन्य से इसका निर्माण किया गया है।‌ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल तरीके से इस सिंथेटिक ट्रैक का शुभारंभ किया था। यह ट्रैक पूर्णियां विश्वविद्यालय के अधीन है। इसके प्रबंधन की जिम्मेदारी विश्वविद्यालय के पास है। इसका लाभ खिलाड़ियों को नहीं मिल रहा है। पूर्व में कहा गया था कि सिंथेटिक ट्रैक के बनने से एथलेटिक्स के खिलाड़ियों को फायदा होगा और उन्हें अभ्यास करने का भी मौका मिलेगा। राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट का भी आयोजन होगा। मगर यह वादा पूरा नहीं हुआ और न ही किसी तरह के नेशनल गेम का आयोजन हुआ। एक बार राज्य स्तरीय एथलेटिक्स टूर्नामेंट का आयोजन किया गया जो महज खानापूर्ति थी। इस दौरान अन्य जिले से आए खिलाड़ियों ने सुविधा नहीं मिलने पर सवाल भी उठाया था।

स्टेडियम पर लटक रहा ताला उबड़ खाबड़ मैदान पर दौड़ रहे खिलाड़ी

राष्ट्रीय स्तर के सिंथेटिक ट्रैक रहने के बाद भी युवा खिलाड़ी स्टेडियम के बाहर उबड़ खाबड़ और गड्ढे से भरे रंगभूमि मैदान में प्रैक्टिस करते हैं कभी पैर में मोच आ जाता है तो कभी चोट भी लग जाती है। इससे जनप्रतिनिधियों को कोई मतलब नहीं है और जिम्मेदार पल्ला झाड़ लेते हैं। गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर स्टेडियम खुलता है और उसी ट्रैक पर जिला प्रशासन के विभिन्न विभागों द्वारा झांकी भी निकाली जाती है इस दौरान बड़े बड़े वाहन भी ट्रैक से गुजरते हैं। ये सब कुछ जिला के आलाधिकारियों के सामने होता है मगर कहते हैं न कि अपना काम बनता तो क्यों करें किसी की चिंता। पूर्णियां में यदि केंद्रीय स्तर के किसी बड़े नेता का आगमन होता है तो इसी स्टेडियम के भीतर पूरे तामझाम के साथ हैलीपेड बनाया जाता है। उस वक्त रहनुमाओं के लिए नियम बदल जाता है और प्रशासनिक अमला पलकें बिछाए रहते हैं।

सबसे मजे की बात ये है कि इस सिंथेटिक ट्रैक के बनने के बाद आमलोगों और मैदान में प्रतिदिन अभ्यास करने वाले खिलाड़ियों के प्रवेश पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है। इसके पूर्व 37 साल से लोग सुबह की सैर के लिए स्टेडियम जाते थे। मेंटनेंस के अभाव में करोड़ों की लागत से बना सिंथेटिक ट्रैक दो साल के भीतर ही खराब होने लगा है। सिंथेटिक ट्रैक के दोनों तरफ लगा स्टील बार्डर गायब है। लिहाजा बरसात होने से ट्रैक पर दबाव पड़ रहा है कहीं साइड से उखड़ रहा है तो कहीं बीचोंबीच ट्रैक पर पानी जम रहा है जिससे ट्रैक के टूटने की संभावना है। इसके अलावा हैमर और डिस्कस थ्रो के लिए दोनों तरफ लगाया गये केज पोल में पूरब दिशा का लगभग दस केज पोल गायब है। यह किसने उखाड़ा कहां गया इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। स्टेडियम के भीतर जंगल का अंबार है। इसकी नियमित साफ सफाई नहीं होती है। पूर्णियां जिला एथलेटिक्स संघ के सदस्य मुसव्वर अहमद ने कहा कि सिंथेटिक ट्रैक सिर्फ बना देने से कुछ नहीं होगा जबतक कि खिलाड़ियों को इस पर दौड़ने की अनुमति नहीं मिलेगी तो सब बेकार है। उन्होंने कहा कि सभी खिलाड़ियों से मेडल की उम्मीद करते हैं मगर जब संसाधन का सही उपयोग नहीं होगा और सुविधा ही नहीं मिलेगी तो खेलो इंडिया का सपना साकार नहीं हो सकता। युवा खिलाड़ी कहते हैं कि सुविधा के बगैर खिलाड़ी क्या कर सकते हैं।

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