पूर्णियां/मलय कुमार झा
मेडिकल हब के नाम से चर्चित लाइन बाजार में लोग कोसी सीमांचल सहित बंगाल से भी इलाज कराने पहुंचते हैं। स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी से डॉक्टर नगरी में असली और नकली दोनों तरह का काम होता है। यहां मरीजों के जान की किसी को परवाह नहीं है। डॉक्टर मरीज पर ही एक्सपेरिमेंट करते हैं इस दौरान जान बच गई तो चिकित्सक की बल्ले बल्ले वर्ना मौत होने से कोई नहीं रोक सकता। गरीब तबके के लोग ब्याज पर पैसे उठाकर जमीन बेचकर इलाज कराने आते हैं। बेहतर स्वास्थ्य सेवा के नाम पर धरती के भगवान हैवान बनते जा रहे हैं। यहां क्लिनिक में एडमिट करने के पूर्व मोटी रकम ली जाती है और मरीज की मौत के बाद भी सौदा किया किया जाता है। अप्रशिक्षित कंपाउंडर और नर्स के सहारे धड़ल्ले से क्लिनिक का संचालन किया जा रहा है। यूं कहें कि लाइन बाजार मेडिकल माफिया की गिरफ्त में हैं। जी हां ये सौ फीसदी सच है।
शहर के लाइन बाजार स्थित बिहार टाॅकीज रोड स्थित डॉ बी के सिंह और डॉ शिवानी सिंह के आरोग्य आशीर्वाद नर्सिंग होम में प्रसूता की मौत के बाद परिजनों ने जमकर हंगामा किया। मृतक के परिजनों ने डॉक्टर पर लापरवाही का आरोप लगाते शव को रोड पर रखकर तीन घंटे तक रोड जाम कर दिया। काफी देर तक हाई वोल्टेज ड्रामा होता रहा। बताया जा रहा है कि अररिया जिले के जमुआ गांव निवासी प्रवीण ठाकुर की गर्भवती पत्नी चांदनी ठाकुर को 22 जुलाई को डॉ शिवानी सिंह के क्लिनिक में भर्ती कराया। दोपहर साढ़े बारह बजे ऑपरेशन किया गया। इस दौरान चांदनी ने एक बच्ची को जन्म दिया। इसके बाद प्रसूता ऑपरेशन कक्ष से स्वयं चलकर रूम तक गई। मगर ऑपरेशन के बाद शाम से चांदनी की तबीयत बिगड़ने लगी। यूरिन होने में दिक्कत आ रही थी। इसके बाद प्रसूता की मौत हो गई। डॉ ने बचने के इरादे से मरीज की स्थिति गंभीर बताकर पल्ला झाड़ते हुए हायर सेंटर रेफर कर दिया। मरीज के परिजन जीएमसीएच पहुंचे तो डॉ ने कहा कि मरीज की तीन घंटे पूर्व ही मौत हो चुकी है। इसके बाद हंगामे का दौर शुरू हो गया। मृतका के पति प्रवीण ठाकुर और देवर धीरज ने डॉ पर लापरवाही का रूप लगाते हुए कहा कि ऑपरेशन के दौरान ही पेशाब की नली काट दी गई थी। लिहाजा मरीज की जान चली गई। उन्होंने कहा कि पहले डेढ़ लाख रुपये जमा कराया गया। इसके बाद फिर से रुपया जमा करने को कहा गया। घटना की सूचना पर पुलिस की टीम पहुंची। लोगों को काफी समझाया बुझाया मगर आक्रोशित लोग किसी की बात मानने को तैयार नहीं थे। वहीं हाॅस्पिटल प्रबंधन अपनी कमी छुपाने के लिए मृतका के परिजनों से समझौता कर मामले को रफा दफा किया। यह कोई पहली घटना नहीं है हर घटना के बाद लीपापोती और फिर से मौत का खेल शुरू हो जाता है। अहम सवाल की आखिर आमलोगों की जिंदगी कब तक लापरवाह सिस्टम की भेंट चढ़ती रहेगी। लगाम लगाएगा कौन।