“राष्ट्रवाद का रंगमंच”

रात की चादर तले, स्क्रीन पर उठता है शोर, लाहौर की दीवारें काँपती हैं, ऐसा चलता है ज़ोर। धमाकों की छवियाँ, सीजीआई की चमक, हर एंकर बना सेनापति, हर बहस में क्रुद्ध विमर्श।   वीरता बिकती है यहाँ, पैकेज बना दी गई है मौत, शहीदों के आँसू सूखते हैं, पर टीआरपी पाती है सौगात। अधजली चिट्ठियाँ, अधूरी पेंशन की फाइलें, झाँकती हैं…

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